तीर न तलवार से मरती है सच्चाई
जितना दबाओ उतना उभरती है सच्चाई
ऊंची उड़ान भर भी ले कुछ देर को फरेब
आखिर में उसके पंख कतरती है सच्चाई
लोहा जैसे बनता है फौलाद उस तरह
शोलों के बीच में से गुजरती है सच्चाई
सर पर उसे बैठाते हैं जन्नत के फ़रिश्ते
ऊपर से जिसके दिल में उतरती है सच्चाई
जो धूल में मिल जाए, वज़ाहिर, तो इक रोज़
बागे़-बाहर बन के संवरती है सच्चाई
रावण की बुद्धि बल से न जो काम हो सके
वो राम की मुस्कान से करती है सच्चाई
जितना दबाओ उतना उभरती है सच्चाई
ऊंची उड़ान भर भी ले कुछ देर को फरेब
आखिर में उसके पंख कतरती है सच्चाई
लोहा जैसे बनता है फौलाद उस तरह
शोलों के बीच में से गुजरती है सच्चाई
सर पर उसे बैठाते हैं जन्नत के फ़रिश्ते
ऊपर से जिसके दिल में उतरती है सच्चाई
जो धूल में मिल जाए, वज़ाहिर, तो इक रोज़
बागे़-बाहर बन के संवरती है सच्चाई
रावण की बुद्धि बल से न जो काम हो सके
वो राम की मुस्कान से करती है सच्चाई
-उदय प्रताप
chaudhari madan mohan samar
संकल्पों के साधक हो तुम, साहस भरी उड़ान हो,
मुकुट तुम्ही हो भारत माँ का, तुम ही हिन्दुस्तान हो।
तुम्ही शिवाजी की हुंकारें, राणा की तलवार तुम्ही,
शंखनाद हो भगत सिंह का, ऊधम की ललकार तुम्ही,
शेखर के संकल्पों की तुम गाती हुई जवानी हो,
तुम्ही सुनीता विलियम्स वाली साहस भरी कहानी हो,
इंदिरा हो तुम, लाल बहादुर, तुम ही अटल बिहारी हो,
भीमराव हो, जयप्रकाश हो, नेहरु की फुलवारी हो,
गाँधी की तुम परम अहिंसा, तुम्ही सुभाष का नारा हो,
तुम्ही इरादे हो पटेल के, तुम कलाम की धारा हो,
अन्याय का उत्तर देता, नीतिगत संग्राम तुम्ही,
लोकतंत्र में सिंहासन को कसती हुई लगाम तुम्ही।
खेतों की हरियाली में तुम बहता हुआ पसीना हो,
सरहद पर संगीन सम्हाले तुम फौलादी सीना हो।
सूर, कबीरा, मीरा, नानक, रहिमन वा रसखान तुम्ही,
तुकाराम, रविदास, फकीरा, तानसेन की तान तुम्ही,
तुम्ही दधीचि, दुर्वासा हो, परसराम, दशमेश तुम्ही,
एकलव्य हो, भीष्म तुम्ही हो, लक्ष्मण का वृत्त-वेश तुम्ही,
पीर-फकीरों की माला हो, शिरडी का अवतार तुम्ही,
मदर टेरेसा की गोदी में ज़िंदा प्यार-दुलार तुम्ही,
दयानंद का शोध तुम्ही हो, ओशो का अनुरोध तुम्ही,
परमहंस का बोध तुम्ही हो, गीता का उद्बोध तुम्ही,
हर युग में चाणक्य तुम्ही हो, चन्द्रगुप्त की ज्वाला हो,
तुम्ही वेद की ऋगा शाश्वत, तुलसी और निराला हो।
महावीर हो, बुद्ध तुम्ही हो, पांच तत्त्व के ज्ञाता हो,
अरे उठो विवेकानन्द, तुम्ही तो भारत के निर्माता हो।
याद करो वो पन्ना धाय वाला पन्ना तुम्ही तो हो,
झांसी वाले झण्डे की हर विजयी तमन्ना तुम्ही तो हो,
तुम्ही पद्मिनी हो इज्जत की खातिर जिसने आग चुनी,
मैना हो जो जली मगर जो जल कर आजादी का राग बनी,
आदर्शों की किरण बाँटती वर्दीधारी तुम्ही तो हो,
संसद की प्राचीर बनी कमलेश कुमारी तुम्ही तो हो,
सा रे गा मा पा धा नी सा के उस पार लता हो तुम,
केवल इंदिरा गाँधी लिख दो तो भारत का पता हो तुम,
तुम्ही शकुंतल के भारत हो, दांत गिने जो शेरों के,
लव-कुश हो, अवरोध हुए जो अश्वमेध के पैरों के।
दीवारों में चुने गए जो दुधमुहों का होश तुम्ही,
गजनी को ललकार भगाने वाला राजा भोज तुम्ही।
दर्शन हो, विज्ञान तुम्ही, कल हो तुम, इतिहास हो,
पत्थर में भगवान् बसा दे, तुम ऐसा विश्वास हो,
दशकंधर की भरी सभा में तुम अंगद का पाँव हो,
कड़ी चुनौती मिल जाए तो अभिमन्यु का दांव हो,
जो दुष्टों को चीर-फाड़ दे, नरसिंह के नाखून तुम्ही,
सदा भीम के भुजदंडों में बहने वाला खून तुम्ही,
खप्पर हो तुम रणचंडी के, बाँसुरिया हो श्याम की,
तुम्ही रूद्र का नेत्र तीसरा, शक्ति हो तुम राम की,
अर्जुन के तुम धनुष-बाण हो, तुम्ही स्वयं षड़ंगी हो,
मैं तो केवल जामवंत हूँ, तुम सारे बजरंगी हो,,
तुम बजरंगी, देश राम है, सीता भारत माता है,
संग नील-नल खड़े हुए तो जल सेतु बन जाता है।
उठो, उठो टटोलो अपने मन को, अपनी शक्ति जानो,
संकट का हर सागर लाँघो, सुरसा को पहचानो।
हमको भी तो चूनर-चोली-चुम्बन गाना आता है,
इतराते, बलखाते यौवन पर बतियाना आता है,
लिख सकते हैं मधुर राग के आलिंगन-अंगड़ाई पर,
गालों के शर्मीलेपन पर, आँखों की सुरमाई पर,
लिख सकते हैं चूड़ी-कंगन और कलाई गोरी पर,
लिख सकते हैं अल्हड़ता पर, चिमटी और चिरौरी पर,
लिखने को तो लिख सकते हैं मस्ती भरी कहानी पर,
लिख सकते हैं शीला-मुन्नी की बदनाम जवानी पर,
पर हम भी इस में डूब गए तो तुमको कौन जगायेगा,
कौन तुम्हे फिर भारत माँ के रिसते घाव दिखाएगा।
इसिलिए मैं चिंगारी की राख हटाया करता हूँ,
ये वक्त बहुत ही नाज़ुक है, मैं तुम्हे जगाया करता हूँ।
हम जाग उठे तो अन्दर-बाहर के दुश्मन थर्राएंगे,
फिर सभी तिरंगे की इज्ज़त में जय हो भारत गायेंगे,
ना होंगे विस्फोट कहीं पर, ना सीमायें रोएँगी,
ना होंगे वीराने आँचल, नहीं राखियाँ खोएँगी,
ये हूजी-हिजबुल-लश्कर-उल्फ़ा-नक्सलवादी सोयेंगे,
उन्हें पालने वाले उनको अपने काँधों पे ढोयेंगे,
फिर बीजिंग की जुर्रत कैसी अरुणाचल पे बात करे,
दो कौड़ी का कोई लफंगा मुंबई पर संघात करे।
हम जागे, हम जागे, तो सात समंदर अपना डंका बोलेगा,
पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण वन्दे मातरम बोलेगा।
- चौधरी मदन मोहन 'समर'
मुकुट तुम्ही हो भारत माँ का, तुम ही हिन्दुस्तान हो।
तुम्ही शिवाजी की हुंकारें, राणा की तलवार तुम्ही,
शंखनाद हो भगत सिंह का, ऊधम की ललकार तुम्ही,
शेखर के संकल्पों की तुम गाती हुई जवानी हो,
तुम्ही सुनीता विलियम्स वाली साहस भरी कहानी हो,
इंदिरा हो तुम, लाल बहादुर, तुम ही अटल बिहारी हो,
भीमराव हो, जयप्रकाश हो, नेहरु की फुलवारी हो,
गाँधी की तुम परम अहिंसा, तुम्ही सुभाष का नारा हो,
तुम्ही इरादे हो पटेल के, तुम कलाम की धारा हो,
अन्याय का उत्तर देता, नीतिगत संग्राम तुम्ही,
लोकतंत्र में सिंहासन को कसती हुई लगाम तुम्ही।
खेतों की हरियाली में तुम बहता हुआ पसीना हो,
सरहद पर संगीन सम्हाले तुम फौलादी सीना हो।
सूर, कबीरा, मीरा, नानक, रहिमन वा रसखान तुम्ही,
तुकाराम, रविदास, फकीरा, तानसेन की तान तुम्ही,
तुम्ही दधीचि, दुर्वासा हो, परसराम, दशमेश तुम्ही,
एकलव्य हो, भीष्म तुम्ही हो, लक्ष्मण का वृत्त-वेश तुम्ही,
पीर-फकीरों की माला हो, शिरडी का अवतार तुम्ही,
मदर टेरेसा की गोदी में ज़िंदा प्यार-दुलार तुम्ही,
दयानंद का शोध तुम्ही हो, ओशो का अनुरोध तुम्ही,
परमहंस का बोध तुम्ही हो, गीता का उद्बोध तुम्ही,
हर युग में चाणक्य तुम्ही हो, चन्द्रगुप्त की ज्वाला हो,
तुम्ही वेद की ऋगा शाश्वत, तुलसी और निराला हो।
महावीर हो, बुद्ध तुम्ही हो, पांच तत्त्व के ज्ञाता हो,
अरे उठो विवेकानन्द, तुम्ही तो भारत के निर्माता हो।
याद करो वो पन्ना धाय वाला पन्ना तुम्ही तो हो,
झांसी वाले झण्डे की हर विजयी तमन्ना तुम्ही तो हो,
तुम्ही पद्मिनी हो इज्जत की खातिर जिसने आग चुनी,
मैना हो जो जली मगर जो जल कर आजादी का राग बनी,
आदर्शों की किरण बाँटती वर्दीधारी तुम्ही तो हो,
संसद की प्राचीर बनी कमलेश कुमारी तुम्ही तो हो,
सा रे गा मा पा धा नी सा के उस पार लता हो तुम,
केवल इंदिरा गाँधी लिख दो तो भारत का पता हो तुम,
तुम्ही शकुंतल के भारत हो, दांत गिने जो शेरों के,
लव-कुश हो, अवरोध हुए जो अश्वमेध के पैरों के।
दीवारों में चुने गए जो दुधमुहों का होश तुम्ही,
गजनी को ललकार भगाने वाला राजा भोज तुम्ही।
दर्शन हो, विज्ञान तुम्ही, कल हो तुम, इतिहास हो,
पत्थर में भगवान् बसा दे, तुम ऐसा विश्वास हो,
दशकंधर की भरी सभा में तुम अंगद का पाँव हो,
कड़ी चुनौती मिल जाए तो अभिमन्यु का दांव हो,
जो दुष्टों को चीर-फाड़ दे, नरसिंह के नाखून तुम्ही,
सदा भीम के भुजदंडों में बहने वाला खून तुम्ही,
खप्पर हो तुम रणचंडी के, बाँसुरिया हो श्याम की,
तुम्ही रूद्र का नेत्र तीसरा, शक्ति हो तुम राम की,
अर्जुन के तुम धनुष-बाण हो, तुम्ही स्वयं षड़ंगी हो,
मैं तो केवल जामवंत हूँ, तुम सारे बजरंगी हो,,
तुम बजरंगी, देश राम है, सीता भारत माता है,
संग नील-नल खड़े हुए तो जल सेतु बन जाता है।
उठो, उठो टटोलो अपने मन को, अपनी शक्ति जानो,
संकट का हर सागर लाँघो, सुरसा को पहचानो।
हमको भी तो चूनर-चोली-चुम्बन गाना आता है,
इतराते, बलखाते यौवन पर बतियाना आता है,
लिख सकते हैं मधुर राग के आलिंगन-अंगड़ाई पर,
गालों के शर्मीलेपन पर, आँखों की सुरमाई पर,
लिख सकते हैं चूड़ी-कंगन और कलाई गोरी पर,
लिख सकते हैं अल्हड़ता पर, चिमटी और चिरौरी पर,
लिखने को तो लिख सकते हैं मस्ती भरी कहानी पर,
लिख सकते हैं शीला-मुन्नी की बदनाम जवानी पर,
पर हम भी इस में डूब गए तो तुमको कौन जगायेगा,
कौन तुम्हे फिर भारत माँ के रिसते घाव दिखाएगा।
इसिलिए मैं चिंगारी की राख हटाया करता हूँ,
ये वक्त बहुत ही नाज़ुक है, मैं तुम्हे जगाया करता हूँ।
हम जाग उठे तो अन्दर-बाहर के दुश्मन थर्राएंगे,
फिर सभी तिरंगे की इज्ज़त में जय हो भारत गायेंगे,
ना होंगे विस्फोट कहीं पर, ना सीमायें रोएँगी,
ना होंगे वीराने आँचल, नहीं राखियाँ खोएँगी,
ये हूजी-हिजबुल-लश्कर-उल्फ़ा-नक्सलवादी सोयेंगे,
उन्हें पालने वाले उनको अपने काँधों पे ढोयेंगे,
फिर बीजिंग की जुर्रत कैसी अरुणाचल पे बात करे,
दो कौड़ी का कोई लफंगा मुंबई पर संघात करे।
हम जागे, हम जागे, तो सात समंदर अपना डंका बोलेगा,
पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण वन्दे मातरम बोलेगा।
- चौधरी मदन मोहन 'समर'