Wednesday, June 22, 2011

आजादी बचाओ आन्दोलन


डॉ0 बनवारी लाल शर्मा
लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन के कई लड़ाकू सिपाहियों, कुछ बुद्धिजीवियों और छात्र-युवाओं के साथ 5 जून 1989 को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गांधी भवन में सम्पूर्ण क्रान्ति दिवस मानने जुटे तो चर्चा में से यह विचार निकला कि देश की दुर्दशा में कहीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का योगदान तो नहीं है। इस विचार को ’लोक स्वराज अभियान’ नामक संगठन बनाकर इलाहाबाद में इस पर शोधकार्य शुरू किया गया। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सामानों की सूची बनाना शुरू किया गया और विश्वविद्यालय के छात्रावासों, कालेजों में इन कम्पनियों के सामानों, खासतौर से कोकाकोला, पेप्सीकोला के बहिष्कार का अभियान शुरू हो गया। दो वर्ष में बहुराष्ट्रीय गुलामी का विचार अनेक गांधीवादी, समाजवादी विचारकों एवं समाजकर्मियों में वैज्ञानिकों, पत्रकारों, छात्रों अध्यापकों के बीच फैला और 8-9 जनवरी 1991 को महात्मा गांधी के सेवाग्राम आश्रम में पहला राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ जिसमें बहुराष्ट्रीय गुलामी के विरुद्ध मुक्ति संग्राम का नाम आजादी बचाओ आन्दोलन रखा गया।
पहले 10-11 साल में आन्दोलन के साथियों ने बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सामानों का बहिष्कार कराने के साथ-साथ इस विचार को जन-जन के और जन संगठनों के बीच पहुँचाने का अथक प्रयास किया कि बहुराष्ट्रीय कारपोरेशन विकास के लिए नहीं आते। इनका यह महिमा मण्डन कि ये अपने साथ पूंजी और टैक्नोलाजी लाते हैं, गुणवत्तापूर्ण सस्ता सामान उपभोक्ता को उपलब्ध कराते हैं, यह भ्रामक है, गलत है और देश को फिर से लूटने की सोची-समझी साजिश है। ये कम्पनियाँ कैसी-कैसी छल-फरेबी करती हैं - अंडरइनवायससिंग और ओवरवायसिंग से कैसे अकूत धन देश के बाहर ले जाती हैं, सरकारों से तरह-तरह की सुविधाएँ और सबसिडियाँ लेती हैं और अपने उत्पादन के खर्च के एक बड़े हिस्से का बाह्यकरण ;म्गजमतदंसपेंजपवदद्ध कहती हैं यानी उसकी भरपाई व्यापक समाज को करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए कोका कोला और पेप्सी के ठण्डेपेयों में 90 फीसदी पानी होता है जो लगभग वे मुफ्त लेती हैं, साथ ही उनके प्लांटों के कारण आसपास के जलस्रोत सूखते हैं, पानी प्रदूषित होता है और कष्षि की जमीन कैडमियम जैसी धातुओं के फैलने के कारण जहरीली हो जाती है। यह सारा खर्च प्लांट के आसपास के किसान और लोग उठाते हैैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के काले कारनामों को आन्दोलन ने खोजकर अमा जन के सामने रखा और उनकी प्रचारित महिमा का खण्डन किया। इनमें कोला कम्पनियाँ, कारगिल, यूनियन कारबाइड, एनरान आदि को विशेष रूप से लक्ष्य बनाया गया।
इस अभियान के लिए कई भाषाओं में करोंड़ों पर्चे छपाकर बाँटे गये, बुलैटिन ’साथियों की चिट्ठी’ और मासिक ’नई आजादी उद्घोष’ हिन्दी व अंग्रेजी में प्रकाशित की गयीं, छोटी-छोटी पुस्तिकाएँ, कैसेट और पोस्ट तैयार किये गये। साथियों ने जगह-जगह गोष्ठियाँ, सभाएँ, नुक्कड़ नाटक आदि करके विचार को फैलाया। स्कूल-कालेजों के छात्र-छात्राओं पर विशेष ध्यान दिया गया। दो बार उनकी मानव श्रंष्खलाएँ बनायी गयीं, एक बार उत्तर प्रदेश में 300 किलोमीटर लम्बी और दूसरी बार हरियाणा, पंजाब, चण्डीगढ़, पश्चिम उत्तर प्रदेश, राजस्थान में 1200 किलोमीटर लम्बी जिनमें क्रमशः 4 लाख और 10 लाख लोग खड़े हुए।
आन्दोलन के इस पहले दौर में एक महत्वपूर्ण कार्य हुआ। आन्दोलन शुरू होने के दूसरे साल भारत सरकार ने नयी आर्थिक नीति की घोषणा की जो दरअसल विश्व बैंक, मुद्राकोष द्वारा नियोजित भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की नीतियाँ थीं। साथ ही गैट के आठवें चक्र में विश्व व्यापार संगठन का गठन हो रहा था। इन सबका उद्देश्य भारत के बाजारों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए खोलना था। आन्दोलन ने जिनेवा से विश्व व्यापार संगठन के लिए तैयार किये गये डंकल ड्राफ्ट की एक प्रति मंगवाकर उसको प्रचारित किया। डंकल ड्राफ्ट को चुनौती देने वाली सबसे पहली जनहित याचिका आन्दोलन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दखिल की। डंकल ड्राफ्ट को सरकार न माने, इसके लिए 20 लाख हस्ताक्षर इकटठे किये गये। आन्दोलन ने इस बात को देश में फैलाया, खासतौर से जनसंगठनों में कि भूमण्डलीकरण पुनः उपनिवेशीकरण है। यह प्रसन्नता की बात है कि अब देश के सभी जन संगठन, जन आन्दोलन भूमण्डलीकरण के विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं। 20-22 वर्ष पहले आन्दोलन ने जो चिन्ताएँ व्यक्त की थीं, वे आज दिखायी पड़ रही हैं। आज देश को उद्योगों, सेवा क्षेत्र, वित्त क्षेत्र, खेती, खुदरा व्यापार - सभी में देशी-विदेशी कारपोरेट घुस गये हैं और सरकारें उनके प्रवेश करने में मददगार बन रही हैं। जिस कारपोरेट कालोनियलिज्म की बात आन्दोलन लगातार करता आ रहा है आज वह देश में स्थापित हो गयी है।
आन्दोलन का दूसरा वर्तमान चरण: संसाधनों पर जनसमुदाय की मालिकी का दौर
आन्दोलन के साथी यह लगातार महसूस करते रहे हैं कि देश की विकट समस्याओं, गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, गैर बराबरी, भ्रष्टाचार, सामाजिक विघटन आदि को हल करने के लिये यह जरूरी है बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का शिंकजा काटा जाय। ये कम्पनियाँ ही ज्यादातर समस्याओं की जननी हैं। पर ऐसा भी नहीं है कि इन कम्पनियों को बाहर खदेड़ देने से हमारी समस्याएँ अपने आप हल हो जायेंगी। उनका वर्चस्व घटने से समस्याएँ हल करने की परिस्थितियाँ अनुकूल बनेगी। पर असली मुद्दा यह है कि जो देश अपार संसाधन हैं - जमीन, पानी, जंगल, खानें, जलसम्पदा, पर्वतीय सम्पदा, इनका मालिक कौन है ? इनका विनियोग कैसे हो, इसका निर्णय करने का अधिकार किसके हाथ में है ?
इस समय मान्यता यह है कि देश के संसाधनों की मालिक सरकारें हैं और वे उन्हें कम्पनियों को दे सकती हैं। आन्दोलन ने घोषणा की है कि यह मान्यता गलत है। देश के संसाधनों के मालिक जन समुदाय हैं, जन समाज है- ग्राम समाज, मुहल्ला समाज। औद्योगिक क्रान्ति के बाद उद्योगों का वर्चस्व बढ़ता गया, बड़े-बड़े उद्योग पनपते गये जिनकी मालकियत या तो निजी प्राइवेट रही है या सरकार (पब्लिक)। कष्षि पर आधारित छोटे उद्योगों को इन बड़े उद्योगों ने सीमान्त कर दिया है। पूंजी का केन्द्रीकरण और आबादी का शहरीकरण तेजी से बढ़ा है। इस कारपोरेटी व्यवस्था ने पूरी दुनिया में विशेष रूप से भारत में तीन दुष्परिणाम पैदा किये हैः गरीबी-बेरोजगारी - गैरबराबरी, सामाजिक विघटन और पर्यावरण का विनाश। आन्दोलन की मान्यता है कि इस आर्थिक-सामाजिक-पर्यावरणीय संकट से मुक्ति पाने के लिए वर्तमान उद्योग-केन्द्रित पूंजी-प्रधान कारपोेरेटी विकास मॉडल को बुनियादी तौर से बदलना होगा। उसके स्थान पर कष्षि-केन्द्रित श्रम-प्रधान लघु उद्योगों से पोषित जन सामुदायिक विकास मॉडल स्थापित करना होगा। इसका पहला कदम है-संसाधनों पर जन समुदाय की मालकियत की घोषणा।
जन समुदाय की यह मालकियत स्थापित कैसे हों ? इसकी शुरुआत हो रही है। जगह-जगह पर संसाधनों पर कम्पनियों/सरकारें द्वारा कब्जा करने के विरुद्ध चल रहे जन आन्दोलन के एक उदाहरण से इसे समझने की कोशिश करें। झारखंड के हजारी बाग जिले में छः साल पहले वहाँ के 205 गाँवों को जमीन 32 देशी-विदेशी कम्पनियों को कोयला खनन और ताप बिजली पैदा करने के लिए दे दी गयी। आन्दोलन ने गाँववासियों को समझाया कि मुआवजा लेकर खेती की जमीन छोड़ देने से वे बर्बाद हो जायेंगे। उनको एक एकड़ जमीन के नीचे आज के दाम पर 40 करोड़ रुपये का कोयला भरा है। केवल जमीन ही नही, उसके नीचे का कोयला भी किसानों का है, भले ही सरकार कहे (कोयला कानून) की 2 फुट नीचे तक जमीन किसान की, उसके जमीन सरकार की। किसानों को बात समझ में आयी और पिछले छः साल से उन्होंने एक भी कम्पनी को वहाँ काम शुरू नहीं करने दिया है। पर सरकार कोयले पर जन समुदाय की मालकियत माने कैसे ? ग्राम सभाएँ इनती दमदार नहीं, उनके पिछले कई सालों से चुनाव भी नहीं हुए। अतः ग्राम समाज अपना हक स्थापित कर सकें ऐसी स्थिति वहाँ अभी नहीं बनी। अतः एक कदम आगे बढ़ने के लिए मध्यमार्ग निकाला गया। कम्पनी कानून 1956 में एक संशोधन हुआ है 2002 में और बना है प्रौडयूसर कम्पनी कानून। इसके तहत गाँव के किसान अपनी कम्पनी बना सकते हैं जिसका ढाँचा कोआरेटिव सोसाइटी की तरह होता है, बराबर के शेयर, कोई बाहरी व्यक्ति शेयरधारक नही, कम्पनी के लाभांश का एक भाग गाँव के कल्याण के लिए खर्च होता है, ऐसे प्रावधान इस कम्पनी में हैं। हजारी बाग में कई गाँवों को मिलाकर प्रोड्यूसर कम्पनियाँ बनायी गयी, अब तक 5 कम्पनियाँ पंजीकृत हो चुकी हैं। अब स्थिति यह है कि लोग बड़ी बाहरी कम्पनियों को तो काम नहीं करने देते, अपनी कम्पनियों को आगे बढ़ा रहे हैं। वे सरकार से कोयला ब्लॉक ले रहे हैं जहाँ गाँव के लोग खनन का काम करेंगे। एक कम्पनी के शेयरधारकों ने 50 मैगावाट ताप बिजली घर बनाने के लिए 100 एकड़ जमीन दे दी है। कोयले के खनन और ताप बिजलीघर पर खड़ा करने की तैयारियाँ चल रही है।
प्रौड्यूसर कम्पनी बनाकर संसाधनों पर जन समुदाय की मालकियत कायम करने का यह शुरुआती प्रयास है। इस प्रयोग को आन्दोलन उत्तराखण्ड में पनबिजली बनाने में कर रहा है। मध्य प्रदेश में कोशिश हो रही है कि सीमेंट बनाने वाली बड़ी देशी-विदेशी कम्पनियों को रोका जाय और लोग प्रौड्यूसर कंपनियों द्वारा बायोमास से बिजली बनाने का काम लोग प्रौड्यूसर कम्पनियाँ बनाकर खुद सीमेंट बनायें। अन्य स्थानों पर प्रौड्यूसर कंपनियों द्वारा बायोमास से बिजली बनाने, दूध की डेयरी चलाने का प्रयास भी चल रहा है। पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, ज्वारभाटा ऊर्जा, से बिजली बनाने का काम लोगों की प्रौड्यूसर कम्पनियों से कराने की भी योजना है। मूल विचार यह है कि गाँव-गाँव में लोगों के हाथ में बिजली आ जाय जिसकी मालकियत और उसके प्रबन्धन का अधिकार उनका हो। लोगों के हाथ में बिजली आ जाने पर कृषि-आधारित लघु उद्योगों का जाल गाँव-गाँव में फैलाया जायेगा जिससे गाँव की सम्पत्ति शहरों और विदेशों को जाने से रुके। लोगों का सशक्तीकरण असलियत में तभी होगा।
यह मार्ग आसान नहीं है। इस मार्ग को तैयार करता है संघर्ष। संघर्ष में तपे लोग ही नव निर्माण का काम कर सकेंगे। संघर्ष और निर्माण के माध्यम से देश अधूरी आजादी को पूरा कर सकेगा।
आन्दोलन की वर्तमान गतिविधियाँ:
(1) स्वराज विद्यापीठ के माध्यम से शिक्षण-प्रशिक्षण कार्य: कारपोरेटी गुलामी से देश को मुक्त कराने और नये समाज का निर्माण करने के लिए प्रशिक्षित लोग, विशेसतः नवयुवक और नवयुवतियाँ चाहिए। आज की आजादी की लड़ाई भाग भावनात्मक नहीं है, इसके लिए भावनात्मक तैयारी के साथ-साथ इस कारपोरेटी व्यवस्था की अच्छी समझ और विश्लेषण जरूरी है। स्वराज विद्यपीठ यही काम कर रहा है। देश भर के विद्वानों, समाजकर्मियों, फिल्मों द्वारा आजादी के नये सेनानी तैयार करने का कार्य हो रहा है। विद्यापीठ की विशेषता यह है कि इसके शिक्षक-प्रशिक्षक वेतन/मानदेय नहीं लेते और शिक्षार्थी/प्रशिक्षार्थी फीस नहीं देते।
(2) जन संसद की गतिविधियों में सहयोग करना: अन्य जन संगठनों के साथ आजादी बचाओ आन्दोलन ने एक प्रक्रिया शुरू की है जिसे जन संसद का नाम दिया गया है। इस प्रक्रिया में देश के प्रमुख जन आन्दोलन/जनसंगठन/जन अभियान और सामाजिक सरोकार वाले बुद्धिजीवी देश की मूल समस्याओं पर अपनी समझ बनाकर उनके समाधान की साफ रणनीति बताते हैं और संघर्ष के कार्यक्रम चलाते हैं। जनसंसद का राष्ट्रीय कार्यालय आन्दोलन कार्यालय ही है।
(3) न्यूक्लियर पावर प्लांटों को रोकना: आन्दोलन की मान्यता है कि बिजली उत्पादन के लिए देश में अनेक संसाधन उपलब्ध हैं जिनसे बिजली बनाना खतरनाक नहीं है। परन्तु न्यूक्लियर बिजली बहुत खतरनाक है। केन्द्र सरकार विदेशी कारपोरेटों के दबाव में न्यूक्लियर प्लांट लगानें में जुटी है। फुकुशिमा के हादसे के बाद कई देशों ने न्यूक्लियर प्लांट बिजली को तिलांजलि दे दी है या देने का निर्णय कर लिया है पर भारत सरकार खड़ी हुई है। आन्दोलन सीधे-सीधे तथा अन्य संगठनों को सहयोग करके इन प्लांटों के विरुद्ध आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी कर रहा है। हरियाणा में फतेहाबाद में प्रस्तावित प्लांट के विरुद्ध संघर्ष का संचालन कर रहा है। मई में पश्चिमी तट पर न्यूक्लियर विरोधी यात्रा तारापुर से जैतापुर आयोजित हुई। अगले दो-तीन महीनों में पूर्वीतट और मध्य भारत में ऐसी ही यात्राओं की तैयारी चल रही है।
(4) कोला प्लांटों के विरूद्ध अभियान: आन्दोलन का यह अभियान प्रमुख अभियान रहा है। इसके प्रयास से कई प्लांट बन्द कराये गये हैं। बीच में यह अभियान थोड़ा शिथिल हो गया था, अब फिर से राजस्थान के कालाडेरा और उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, हाथरस के कोकाकोला प्लंाटों के विरुद्ध आन्दोलन तेज हो रहा है। कालाडेरा पर पूरी ताकत लगायी जा रही है।
(5) गंगा-यमुना एक्सप्रैस वे रोकने का अभियान: आन्दोलन की मान्यता है कि ये दोनों एक्सप्रैसवे दोआब की की कष्षि और संस्कष्ति नष्ट कर देंगे। जगह-जगह पर किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जमुना एक्सप्रैसवे के विरोध गलत दिशा में जा रहे हैं, वहाँ भूमि बचाने का नहीं, अधिक मुआवजा पाने का मुद्दा खड़ा हो गया है। कहीं-कहीं किसान भूमि बचाने पर भी खड़े हुए हैं। गंगा एक्सप्रैसवे के खिलाफ पूर्वी उत्तर प्रदेश में आन्दोलन हुए हैं। आन्दोलन की कोशिश चल रही है कि ये स्थानीय आन्दोलन एक बड़ा आन्दोलन बनें और संघर्ष जमीन बेचने के लिए नहीं, जमीन बचाने के लिए हो। इसके लिए 19-20 जून को आदर्श जनता इण्टर कालेज, ओंग (फतेहपुर) में सभी साथियों की बैठक आगे की रणनीति बनाने के लिये हो रही है।
(6) विनाशकारी प्रकल्पों के विरुद्ध अभियान: विदर्भ में कोयला खनन और प्रस्तावित 85 ताप बिजलीघरों के खिलाफ संघर्ष में आन्दोलन भागीदारी कर रहा है। उसकी पहले से वहाँ से अडानी कम्पनी को भगाया गया। मध्य प्रदेश के कटनी जिले की बरही तहसील में महानदी के किनारे 7 ताप बिजली घर प्रस्तावित हैं। आन्दोलन उन्हें न लगने देने के संघर्ष में भागीदारी कर रहा है। ओडिशा में दक्षिण कोरियाई कम्पनी पोस्को के स्टील प्लांट के खिलाफ चल रहे किसानों के आन्दोलन को समर्थन दिया जा रहा है।
(7) शान्ति और न्याय अभियान: सरकार की नीतियों में ंिहंसा है, समाज के कुछ लोग उसका हिंसा से विरोध करते हैं। सरकार उस विरोध को कानून और व्यवस्था की समस्या मानकर उसका हिंसा से दमन करती है। विदर्भ, आन्ध्र प्रदेश, ओडिश्सा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में माओवाद के नाम पर ऐसी हिंसा होने वाली हिंसा का सरकार ऑपरेशन ग्रीनहंट जैसे अभियान चलाकर दमन कर रही है। गृहयुद्ध की सी परिस्थितियाँ बन रही हैं। आंदोलन ने इसमें पहल की है। जन संसद के संगठनों के साथ पिछले साल मई में छत्तीसगढ़ में एक शान्ति एवं न्याय यात्रा रायपुर से दंतेवाड़ा तक निकाली। ऐसी ही यात्राओं की तैयारी अन्य प्रस्तावित प्रदेशों में चल रही है।(पीएनएन)
अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के गणितज्ञ प्रो0 बनवारी लाल शर्मा, आजादी बचाओ अन्दोलन के राष्ट्रीय संयोजक हैं।
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